Diya Jethwani

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वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (10)

सासु जी के हामी भरते ही पतिदेव जी अगले महीने की टिकिट्स बुक करवा आएं....। मैं पल - पल घड़ियाँ गिनने लगी.....। कब वो दिन आएगा.... कब मैं घर के बाहर निकलुंगी.... कब मैं मेरे मायके वालों का नया घर देखुंगी.... कब मैं मम्मी से मिलुंगी.....। हाँ.... मैं मम्मी से मिलने को बहुत बैचेन हो रहीं थीं...। मेरी मम्मी चाहे मेरे बारे में कुछ भी सोचती हो.... मुझसे कुछ भी बोलतीं हो.... मुझसे कैसा भी बर्ताव करतीं हो... पर मैं दिल ही दिल में उनसे बहुत प्यार करतीं थीं....। शायद मैं कभी उनसे कह नही पाई.... पर उनकी बिमारी में मैंने हर रात उनके लिए रोकर दुआ मांगी हैं....। 
पता नहीं ऐसा मेरे साथ हो रहा था.... या सबके साथ होता हैं... पर शादी के बाद पहली बार मायके में जाने की खुशी कुछ अलग ही होतीं हैं.....। 
मेरी बैचेनी बहुत ज्यादा ही बढ़ रहीं थीं....। 
दिन उंगलियों पर गिन रहीं थीं...। सच कहूं तो अंतिम कुछ दिन जब रह गए थे तो काम में मन ही नहीं लग रहा था...। सबकुछ उल्टा पुल्टा कर लेती थीं....। इस वजह से अब सासु जी के साथ साथ जेठानी जी से भी बहुत बार जली कटी बातें (ताने) सुनने पड़ते थे....। 
मुझे कभी कभी बहुत बुरा भी लगता था... जब वो मायके जाने की बात पर ताने मार देतीं थीं.... पर फिर मैं खुद को समझा लेतीं थीं.... । मैं इतनी खुश क्यूँ थीं.... वो शायद मैं किसी को बता नहीं सकतीं थीं....। एक पिंजरे में बंद पंक्षी को जब आजाद किया जाए तो उस वक्त वो कितना खुश होता होगा.... ऊपर आसमान में उड़ने पर.... वैसी ही खुश मैं भी थीं.... एक तो महीनों बाद घर से बाहर जाना... वो भी अपने मायके में....। 

खैर ताने सुनते सुनते वो दिन भी आया जब हमें निकलना था....। हां मेरे ससुराल में उस वक्त ये रिवाज था की बहु जब पहली बार मायके जाए तो उसकी पैकिंग उसकी सास करतीं हैं ओर उसे छोड़ने उसके ससुर जातें हैं...। 
तो मेरी सारी पैंकिग मेरी जेठानी और सासु जी ने ही की थीं...।कपड़ों से लेकर खाने पीने तक का सारा सामान उन्होंने ही पैक किया....। मेरे ससुर जी हमें शाम के वक्त स्टेशन तक छोड़ने भी चले थे...। 
अपनी सीट के नीचे.....सामान वगैरह सेट करके मैं बार बार घड़ी में समय देख रहीं थीं की बस अब ओर इंतजार नहीं.... जल्द से जल्द ट्रेन रवाना हो जाए.....। एक एक पल सदियों जैसा लग रहा था....। आखिर में जब ट्रेन ने चलने का सिग्नल दिया तो ससुर जी से आशीर्वाद लेकर हम दोनों अपनी सीट पर आकर बैठ गए... जैसे ही ट्रेन का इंजन स्टार्ट हुआ... पता नहीं क्यूँ मेरी आंखें छलक पड़ीं....। खिड़की के पास बैठकर ....ठंडी हवाओं के साथ मैं उन्हें छिपाने की नाकामयाब कोशिश कर रहीं थीं.... मुझे लगा कहीं पतिदेव जी ना देख ले.... पर फिर ख्याल आया की देख भी लेंगे तो क्या ही फर्क पड़ने वाला हैं उन को....। ऐसी ना जाने कितनी रातें मैंने दर्द में रोकर निकाली हैं.... ना जाने कितनी बार मैंने उनके आगे आंसू बहाए हैं.... जब तब कोई फर्क नहीं पड़ा तो अब क्या ही पड़ेगा.... ओर वैसे भी ये आंसू क्यूँ निकल रहें थे..... ये तो मैं भी नहीं जानती थीं....। 


पूरे बारह घंटे का सफ़र था..... लेकिन इन बारह घंटों में एक लब्ज़ भी पतिदेव जी ने मुझसे बात नहीं की थीं....। ना ही मेरे पास बैठे थे....। रात नौ बजते ही खाना खाकर अपनी सीट पर सो गए....। मैं पूरी रात कभी उन को तो कभी खिड़की से बाहर के अंधेरे को देख रहीं थीं....। रात ढलते ढलते अंधेरा गहरा रहा था.... ओर मेरी जिंदगी में भी....। 
पूरी रात आंखों से नींद कोसो दूर थीं....। एक क्षण के लिए भी आंखें बंद नहीं हुई थीं...। सवेरे पांच बजे हमारा स्टेशन आने वाला था.... मैंने साढ़े चार बजते ही पतिदेव को उठा दिया था....। 

स्टेशन जैसे जैसे नजदीक आ रहा था.... एक अजीब सी सरसराहट हो रहीं थी....। पांच बजते ही हम स्टेशन पहुंचे...। 
स्टेशन से बाहर आते ही हमने ओटो लिया ओर घर की ओर चल दिए....। 
मेरे ससुराल में पैसे की कोई कमी नहीं थीं.... लेकिन फिर भी पतिदेव जी दस रुपये के लिए दो ओटो वालों से बहसबाजी में लग गए थे....। लेकिन इस बहसबाजी के वक्त मैं बहुत खुश थीं.....क्योंकि इसी बहसबाजी के चलते मुझे उनकी आवाज तो सुनने को मिली....। 
मोलभाव करने के बाद आखिर एक ओटो बुक कर ही दिया...। वैसे तो रिवाज के मुताबिक मेरे भाइयों को आना था.... स्टेशन पर मुझे लेने के लिए... मम्मी ने बताया की उन्होने उनसे कहा भी था... पर उन दोनों ने साफ़ इंकार कर दिया था...। मेरी बहन को पहली बार लेने वो दोनों उनके ससुराल पांच घंटों का सफ़र तय कर लेने  गयें थे....। मेरे लिए उनके पास आधे घंटे का वक्त भी नहीं था...। कभी कभी ये छोटी छोटी बातें दिल में गहरा घाव कर जाती हैं.... पर अपने स्वभाववश मैं कभी किसी से कुछ कह नही पाती.... ओर शायद इसी वजह से सभी को ये लगता हैं की मुझे कुछ हर्ट नहीं होता.... इसलिए वो हर बार ओर ज्यादा बुरा बर्ताव करते हैं....। 
ओटो में बैठे बैठे ये बात तो दौड़ रहीं थीं की मम्मी- पापा दोनों जाग रहें होंगे...। क्योंकि वो दोनों हमेशा पांच बजे उठ जाते थे...। 
आधे घंटे बाद ही हमारी ओटो मेरे नये घर के बाहर पहूंची.....। घर के बाहर लगी नेम प्लेट से घर आसानी से पहचान लिया...। सामान उतारकर दरवाजे के बाहर आई ओर डोरबेल बजाई....। लेकिन भीतर से कोई आवाज़ नहीं आई...। मुझे थोड़ा अजीब लगा.....। मैंने एक बार फिर डोरबेल बजाई....। तब अंदर से मम्मी की आवाज आई.... अगले ही क्षण दरवाजा खुला....। मैंने मम्मी को देखते ही पूछा.... तु ठीक तो हैं ना.... छह बजने वाले हैं... अभी तक सो रहीं थीं...! 

हां ठीक हूँ.... वो तेरे पापा आज जल्दी चले गए थे... तो उनको भेजकर वापस सो गई थीं तो आंख लग गई थीं....। 

मैंने इन बाइस सालों में शायद ये पहली बार होतें देखा था की मम्मी उठने के बाद वापस सो जाए....। अपनी बिमारी के वक्त भी ऐसा उनके साथ कभी नहीं हुआ था...। 
खैर पतिदेव जी ने अदब से मम्मी के पैर छुए और सामान लेकर भीतर की ओर चल दिए...। 

मैंने मम्मी को गले से लगाने के लिए कुछ कदम बढ़ाएं पर शायद मैंने देर कर दी.... क्योंकि मम्मी मेरे आगे बढ़ते ही खुद पलटकर भीतर की ओर चल दी थीं...। 


कैसे होगा मेरे मायके का ये चार दिन का सफ़र जानने के लिए इंतजार करें अगले भाग का....। 

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

14-Mar-2024 07:54 PM

Nice

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Diya Jethwani

13-Mar-2024 03:20 PM

thank you so much all.. 😊

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HARSHADA GOSAVI

13-Mar-2024 07:44 PM

V nice

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